छोटी छोटी खुशियों प़े मुस्कुराती मै
इस चारदीवारी में यादो के किला बनाती मै
लाल तो कभी पीला रंग दीवारों प़े लगाती मै
कतरा कतरा जोड़ के चित्र बनाती मै
ख़ामोशी से अपनी सब कुछ कह जाती मैं
पंख लगा के सपनो के बादल छु आती मैं
नखरों से अपने तुमको सताती मैं
रोज सुबह मंदिर में दिया जलाती मैं
आँगन की इस चौखट पर रंगोली बनाती मैं
कुछ पुरानी यादो पे आंसू बहाती मैं
क्यों अपने गीत में खुद ही रह जाती मैं
-लक्की , २१ जनवरी २०११
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