Friday, January 21, 2011

मैं

छोटी छोटी खुशियों प़े मुस्कुराती मै

इस चारदीवारी में यादो के किला बनाती मै

लाल तो कभी पीला रंग दीवारों प़े लगाती मै

कतरा कतरा जोड़ के चित्र बनाती मै

ख़ामोशी से अपनी सब कुछ कह जाती मैं

पंख लगा के सपनो के बादल छु आती मैं

नखरों से अपने तुमको सताती मैं

रोज सुबह मंदिर में दिया जलाती मैं

आँगन की इस चौखट पर रंगोली बनाती मैं

कुछ पुरानी यादो पे आंसू बहाती मैं

क्यों अपने गीत में खुद ही रह जाती मैं

                              -लक्की , २१ जनवरी २०११

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