छूने को हैं खुला आसमान
पर मन में ये घुटन सी क्यों हैं
मेरे पास ही तो तुम हो
फिर भी मिलने की लगन क्यों हैं
बातें तो होती ही इतनी
खामोश फिर भी ये मन क्यों हैं
जवाब सारे हैं मेरे पास
फिर भी ये उलझन क्यों हैं
आज सब कुछ जगमगा रहा
मेरे दियो में रौशनी कम क्यों हैं
में खुश तो बहुत हूँ
मेरी ख़ुशी में ये गम क्यों हैं