Tuesday, December 28, 2010

काला भी तो एक रंग है

ज़िनदगी के कैसे हैं देखो तो ये रंग
कभी हैं ये अँधेरा कभी हम हुए रौशनी के संग
मुझे तब ये लगा था जेसे अब नहीं बचा कुछ
अब लग रहा की जेसे दमन में आ गया सब
वो वक़्त था कुछ ऐसा की आंसू भी कम पड़े थे
अब तो मेरी राहो में बस फूल ही झाडे थे
ज़िन्दगी फिसल रही थी रेत की तरह तब
मेरे पास हैं एक प्याला अब रेत थामने को
मेरी आँखों की नमी तब हो चली थी खारी
इन आंसुओ को पी जाते हो शरबत समझ के अब तुम
कल तुम अगर होते तो ये ना जान पाती
काला भी तो एक रंग हैं इस रंगीन ज़िन्दगी का