Friday, March 21, 2008

यादें

जरा जरा सी बात करती हैं ये रात
कभी हाथो में हाथ
कभी रोते जज्बात
कभी फूलो की डाली
काटे खुद ही माली
कभी आँसू में भी आशा
कभी मुस्कुराती निराशा
ये बातें कभी हसाती
कभी सिर्फ शोर मचाती
ये सपने कभी बिखरते
कभी सजते और सवंरते
ये शाम के बाद सवेरा
कभी घनघोर ये अँधेरा
कभी हम ही हम रह जाते
कभी में और तुम कहलाते
अचानक से यू मिल जाना
फिर एकदम से खो जाना
क्यों आते हैं ऐसे पल
जो देते हैं खुद को बदल
खुश करने वाली यादें
कुछ रोने की बुनियादें
यादें यादें यादें कुछ और नहीं बस यादें

2 comments:

Unknown said...

Ye teri Creation to nahi lagti jhali ladki...ha ha ha. Joking.. very nice poem. I really liked it.

anurag said...

oye lucky...u urself has written dis???
its a beauty yaar...maan na padega ji aap me talent toh bahut hai...