जरा जरा सी बात करती हैं ये रात
कभी हाथो में हाथ
कभी रोते जज्बात
कभी फूलो की डाली
काटे खुद ही माली
कभी आँसू में भी आशा
कभी मुस्कुराती निराशा
ये बातें कभी हसाती
कभी सिर्फ शोर मचाती
ये सपने कभी बिखरते
कभी सजते और सवंरते
ये शाम के बाद सवेरा
कभी घनघोर ये अँधेरा
कभी हम ही हम रह जाते
कभी में और तुम कहलाते
अचानक से यू मिल जाना
फिर एकदम से खो जाना
क्यों आते हैं ऐसे पल
जो देते हैं खुद को बदल
खुश करने वाली यादें
कुछ रोने की बुनियादें
यादें यादें यादें कुछ और नहीं बस यादें
2 comments:
Ye teri Creation to nahi lagti jhali ladki...ha ha ha. Joking.. very nice poem. I really liked it.
oye lucky...u urself has written dis???
its a beauty yaar...maan na padega ji aap me talent toh bahut hai...
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