कभी थी बिखेरती पन्नों पे कोई कहानी
कवि के कदमों पर कभी चली बेजुबानी
किसी के दुःख को बयाँ करती कभी
पथ प्रदर्शक बनती किसी की कभी
शब्दों की माला रच छू जाती किसी के मन को
कभी कोई समीकरण बन छू जाती प्रसिद्धि के शिखर को
डायरी के पन्नों पर कभी बिखेरती दिल की बातें
प्रेमी के हाथों पड़कर कभी बुनती सुनहरी बातें
मैं देखती हूँ हर जगह यूँ ही
एक भाव विहीन चेहरा नजर आता है
कलम तेरा जीवन
एक इतिहास नजर आता है
- लक्की शर्मा
१७ मई २०१०
7 comments:
behatareen... aap me kaviyatrion ke kuch lakshan vidyamaan hain. apni pratibha ko aur nikharein evam sucharu roop se kavita lekhan ke kshetra me apna yogdaan detee rahein.
रचना में जो भाव उपस्थित लगे सुमन को खास।
काम कलम का तब भी होगा लिखना जब इतिहास।।
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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बहुत अच्छी लीगी कविता... धन्यवाद|
मैं देखती हूँ हर जगह यूँ ही
एक भाव विहीन चेहरा नजर आता है
कलम तेरा जीवन
एक इतिहास नजर आता है
Bahut sundar aur bhavnatmak abhivyakti hai apkee. ummed kartee hun age bhee aise hee likhtee rahengee.
Shubhkamnayen.
Poonam
welcome
इस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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