Saturday, September 25, 2010

कलम न हो जाना तू इतिहास !

कभी थी बिखेरती पन्नों पे कोई कहानी
कवि के कदमों पर कभी चली बेजुबानी
किसी के दुःख को बयाँ करती कभी
पथ प्रदर्शक बनती किसी की कभी

शब्दों की माला रच छू जाती किसी के मन को
कभी कोई समीकरण बन छू जाती प्रसिद्धि के शिखर को
डायरी के पन्नों पर कभी बिखेरती दिल की बातें
प्रेमी के हाथों पड़कर कभी बुनती सुनहरी बातें

मैं देखती हूँ हर जगह यूँ ही
एक भाव विहीन चेहरा नजर आता है
कलम तेरा जीवन
एक इतिहास नजर आता है

- लक्की शर्मा
१७ मई २०१०

7 comments:

Anonymous said...

behatareen... aap me kaviyatrion ke kuch lakshan vidyamaan hain. apni pratibha ko aur nikharein evam sucharu roop se kavita lekhan ke kshetra me apna yogdaan detee rahein.

श्यामल सुमन said...

रचना में जो भाव उपस्थित लगे सुमन को खास।
काम कलम का तब भी होगा लिखना जब इतिहास।।

सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

Patali-The-Village said...

बहुत अच्छी लीगी कविता... धन्यवाद|

पूनम श्रीवास्तव said...

मैं देखती हूँ हर जगह यूँ ही
एक भाव विहीन चेहरा नजर आता है
कलम तेरा जीवन
एक इतिहास नजर आता है
Bahut sundar aur bhavnatmak abhivyakti hai apkee. ummed kartee hun age bhee aise hee likhtee rahengee.
Shubhkamnayen.
Poonam

jayanti jain said...

welcome

संगीता पुरी said...

इस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!